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________________ .२३६ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन नेमिनाथ और राजमतिको लक्ष्यकर सरस शृंगारिक पद रचे है। कविता चुभती हुई है। निम्नपद पठनीय है आवन देरी या होरी। चन्द्रमुखी राजुल सौं जंपत, ल्याउँ मनाय पकर वरनोरी ॥ फागुन के दिन दूर नहीं अव, कहा सोचत तू जियमें मोरी ॥ बाँह पकर राहा जो कहावू, छाँई ना मुख माहू रोरी ॥ सज शृंगार सकल जदुवनिता, अबीर गुलाल लेइ भर झोरी॥ नेमीसर संग खेलौं खिलौना, चंग मृदंग इफ ताल टकोरी॥ हैं प्रभु समुद्रविजे के छोना, तू है उग्रसेन की छोरी ॥ 'रंग' कहै अमृत पद दायक, चिरजीवहु या जुग जुग जोरी ॥ टेकचन्द-हिन्दीकवचनिकाकारोमें इनका भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। टीकाकार होनेके साथ यह कवि भी हैं । कथाकोश छन्दोबद्ध, बुधप्रकाश छन्दोवद्ध तथा कई पूजाएँ पद्यबद्ध है। वचनिकाओंमे तत्त्वार्थकी श्रुतसागरी टीकाकी वचनिका सवत् १८३७ मे और सुदृष्टितरगिणीकी वचनिका सवत् १८३८ में लिखी गयी है। पट्पाहुडकी क्वनिका भी इनकी है । कविता इनकी साधारण ही है । गद्यका रूप भी दूडिहारी है । नथमल विलाला-यह कवि मूलतः आगराके निवासी थे, पर बादमे भरतपुर और अन्तम हीरापुर आकर रहने लगे थे। इनके पिताका नाम शोभाचन्द था । इन्होंने भरतपुरमे मुखरामकी सहायतासे सिद्धान्तसारदीपकका पद्यानुवाद सवत् १८२४ मे लिखा है। यह ग्रन्थ विशालकाय है, श्लोक संख्या ७५०० है। भक्तामरकी भाषा हीरापुरमे पण्डित लालचन्दजीकी सहायतासे की थी। इनके अतिरिक्त जिनगुणविलास, नागकुमारचरित, जीवन्धर चरित और जम्बूस्वामी चरित भी इन्हीकी रचनाएँ है । इनका गद्य पं० टेकचन्दजीके गद्यकी अपेक्षा कुछ परिष्कृत है। कविताके क्षेत्रमे साधारण है।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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