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हिन्दी - जैन-साहित्य- परिशीलन
ऐसे तो अनादि लीनो स्वपर पिछानि अब,
सहज समाधि में स्वरूप दरसाव है ॥
-उपदेशसिद्धान्तरत्न
पं० डालूराम - यह माधवराजपुर निवासी अग्रवाल थे । इन्होने सवत् १८६७ में गुरूपदेश श्रावकाचार छन्दोबद्ध, सवत् १८७१ में सम्यक्त्वप्रकाश और अनेक पूजा ग्रन्थोकी रचना की है । यह अच्छे कवि थे। दोहा, चौपाई, सवैया, पढरि, सोरठा, अडिल्ल, कुण्डलिया आदि विविध छन्दोके प्रयोगमे यह कुशल हैं। एक नमूना देखिए
जिनके सुमति जागी, परसङ्ग रागादि भावन सो
भोग सों भयो विरागी;
स्यागी, जो पुरुष त्रिभुवन मे । जिनकी रहन
न भजन रह
कबहूँ जो सदैव आपको विचार सब तिनके चिकलता न
तेई मोखमारगके साधक कहावे जीव,
न्यारी,
धाम धन में ॥
सुधा,
कार्पे कहू मनमें।
भावे रहो मन्दिरमें भावे रहो वन में ॥
भारामल –— कवि भारामल फर्रुखाबादके निवासी सिगई परशुराम के पुत्र थे और इनकी जाति खरौआ थी । इन्होंने भिण्ड नगरमे रहकर संवत् १८१३ मे चारुचरित्रकी रचना की थी । सप्तव्यसनचरित्र, दानकथा, शीलकथा और रात्रिभोजनकथा भी इनकी छन्दोबद्ध रचनाएँ हैं । कविता साधारण कोटिकी है ।
बखतराम - कवि बखतराम जयपुर लश्करके निवासी थे । इनके चार पुत्र थे--जीवनराम, सेवाराम, खुशालचन्द्र और गुमानीराम | इनका समय उन्नीसवी शताब्दीका द्वितीय पाद है । इन्होंने मिथ्यात्व - खण्डन और बुद्धिविकास नामक दो ग्रन्थ रचे हैं । बुद्धिविलासके