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हिन्दी - जैन- साहित्य-परिशीलन
बुलाकीदास- इनका जन्म आगरामें हुआ था । आप गोयलगोत्री अग्रवाल थे । इनका व्येक 'कसावर' था। इनके पूर्वज बयाने ( भरतपुर) मे रहते थे। साहु अमरसी, प्रेमचन्द्र, श्रमणदास, नन्दलाल और बुलाकीदास यह इनकी वशपरम्परा है। श्रमणदास बयाना छोड़कर आगरामें आकर बस गये थे । इनके पुत्र नन्दलालको सुयोग्य देखकर पण्डित हेमराजने अपनी कन्याका विवाह उसके साथ किया था । इसका नाम जैनी या जैनुलदे था । इसी जैनीके गर्भसे बुलाकीदासका जन्म हुआ था । अपनी माताके आदेशसे कवि बुलाकीदासने सवत् १७५४ मे अपने ग्रन्थकी समाप्ति की थी । कविताका नमूना निम्न प्रकार हैसुगुनकी खानि कीधौं सुकृतकी वानि सुभ
कीरतिकी दानि अपकीरति कृपानि है । स्वारथ विधानि परस्वारथकी राजधानी,
रमाहूकी रानि कीधौं जैनी जिनवानि है ॥ धरमधरनि भव भरम हरनि कीधौं
असरन-सरनि कीधौं जननि जहानि है । हेम सौ ...पन सीलसागर......मनि,
दुरित दरनि सुरसरिता समानि है ॥ किशनसिंह —— यह रामपुरके निवासी संगही कल्याणके पौत्र तथा आनन्दसिंहके पुत्र थे । इनकी खण्डेलवाल जैन जाति थी और पाटनी गोत्र था । यह रामपुर छोड़कर सागानेर आकर रहने लगे थे । इन्होंने सवत् १७८४ मे क्रियाको नामक छन्दोबद्ध ग्रन्थ रचा था, जिसकी लोकसख्या २९०० है । इसके अलावा भद्रबाहुचरित सवत् १७८५ और रात्रिभोजनकथा सवत् १७७३ मे छन्दोबद्ध लिखे हैं । इनकी कविता साधारण कोटि की है। नमूना निम्न है
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माथुर वसंतराय वोहरांको परधान, संगही कल्याणदास पाटणी बखानिये ।
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