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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन
न मानिनी जो अब मान त्यागती, मनोज की है अपराधिनी वहीं। पयोदमाला मिस विज्जुके यही, प्रसारती काम-नृपाल-घोपणा ||
-सि.पृ० १०० संस्कृत काव्योमे महि, कुमारसम्भव और खुवशसे अनेक स्थलोंमे भावसाम्य है। वर्दमानका १० वॉ सर्ग उमरखय्यामसे अनेक अशीमे साम्य रखता है।
यह महाकाव्य भाव, भापा, काव्य-चमत्कार आदि सभी दृष्टियोंसे प्रायः सफल है। .
खण्डकाव्य
वर्तमान युगम जैन कवियोंने खण्डकाव्या-द्वारा जगत् और जीवन के विभिन्न आदर्श और यथार्थका समन्वित रूप प्रस्तुत किया है । "खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्यैकदेशानुसारि च” अर्थात् खण्डकाव्यमै जीवनके किसी पहलूकी झॉकी रहती है। अतः जैनकवियोंने पुरातन मर्मस्पर्शी कथानकोंका चयन कर रचना-कौशल, प्रवन्धपटुता और सहृदयता आदि गुणोका समवाय किया है। जिससे ये काव्य पाठकोकी मुपुत भावनाओको सजग करनेका कार्य सहजमें सम्पन्न करते है। जीवनके किसी पक्षको अधिक महत्त्व देना और पाठककी उसके प्रति प्रेरणा उत्पन्न करना, जिससे पाठक उस भावसे अभिभूत होकर कार्यरूपमे परिणत करनेके लिए प्रवृत हो जाय।
राजुल, विराग, वीरताकी कसौटी, बाहुबली, प्रतिफलन एवं अजनापवनजय काव्य इस युगके प्रमुख खण्डकाव्य है। काव्यसिद्धान्तोके आधारपर इन खण्डकायोंमेंसे कुछका विवेचन किया जायगा।