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________________ हिन्दी - जैन साहित्य- परिशीलन वैराग्य और बढ गया । ससारके पदार्थोंसे उन्हें अरुचि हो गई । हिसा और स्वार्थपरता की भावनाका अन्त करनेके लिए कुमार पत्नी और पुत्री प्रियदर्शनाको छोड़ घरसे चल पडे । उन्होने वस्त्राभूपण उतार दिये और आत्मशोधनमें प्रवृत्त हो गये । साधना कालमे ही भगवान् महावीरके कई शिष्य हुए। मखलीपुत्र गोशालक भी शिष्य हो गया, किन्तु वर्द्धमानकी कठिन साधनासे घघडाकर पृथक रहने लगा, और उसने आजीवक- सम्प्रदाय नामक अलग भत निकाला । वर्धमानको अनेक कष्ट सहन करने पडे, पर निश्चल तप और दिव्य सावन की ज्योतिमं आकर सबने बर्द्धमानका प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। वे जैनधर्मके सत्य और अहिंसाका उपदेश देते रहे । नामालि और गोशालकने महावीरका घोर विरोध किया, पर अन्तमें उन्हें भी पश्चात्तापकी मौत मरना पडा । इन्द्रभूति नामक श्रमणको महावीरने भारतका दयनीय चित्र खींचकर दिखलाया और उस कालके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक ह्रासका परिचय दिया । अन्तमें महावीर पावापुरी पहुॅचे और वहाँ उनका दिव्य उपदेश हुआ और भगवान् महावीरने समाधि ग्रहण की और निर्वाण लाभ किया । ११८ यह कथानक श्वेताम्बर जैन आगमके आधारपर लिया गया है । दिगम्वर मान्यतामे भगवान् महावीरको अविवाहित और साधनाकाम दिगम्बर निर्वस्त्र रहना माना गया है । लेखकने इस नाटकको अभिनयके लिए लिखा है तथा उसका सफल अभिनय मभव भी है। इसकी सभी घटनाएँ दृश्य है, सूक्ष्म घटनाओंका अभाव है । आधुनिक नाट्यकलाक अनुसार सगीत और नृत्य भी इसमें नहीं है । विशेपशाने अभिनयकी सफलताके लिए नाटकमे निम्न गुणोका रहना आवश्यक माना है । १ - कथावस्तुका सक्षिप्त होना । नाटक इतना बडा हो जो अधिकले अधिक तीन घण्टे समाप्त हो जाय.!
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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