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कमलश्री
नाटक
कृत्रिम बनाया गया है। डॉली भी बोझिल है । साहित्यिकताका
अभाव है ।
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कथानक
कमलश्री और शिवसुन्दरी नाटकके रचयिता न्यामत है। ये दोनो नाटक भी पौराणिक है और अभिनय योग्य है ।
हस्तिनापुरके महाराज हरिवलकी कन्या कमलश्री रूपवती होनेके साथ-साथ शीलगुणयुक्ता थी। सेठ धनदेव उसके रूप और गुणोपर आसक्त हो गया और इससे विवाह सम्बन्ध कर लिया | कुछ समयोपरान्त कमलश्रीको सतानका
अभाव खटकने लगा और वह भावावेशमं आकर उदासीन हो मुनिराज - के समीप दीक्षा लेने चली गई । मुनिराजने उसे गर्मिणी जान दीक्षा न दी । गर्भकी बात जानकर कमलश्री परम प्रसन्न हुई ।
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समय पाकर भविष्यदत्त नामक पुत्रका जन्म हुआ । कुछ समय पदचात् एक दिन धनदेव धनदत्तकी पुत्री सुरूपाको देखकर आसक्त हो गया और उसके साथ विवाह कर लिया । कमलश्रीको उसने उसके पीहर भेज दिया । सुरूपाको बन्धुदत्त नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । भविष्यदत्त भी विमाता के व्यवहारसे असन्तुष्ट होकर अपने ननिहाल चला
गया ।
मुरूपाके लाड़-प्यारसे वधुदत्त विगढ़ गया । जब बड़ा हुआ तो भविष्यदत्तके साथ व्यापार करने विदेशको चला। मार्गमै धोखा देकर बधुदत्तने भविष्यदत्तको 'मैनागिरि' पर्वतपर छोड़ दिया और अपने साथियोको लेकर आगे चला गया । वहाँ भविष्यदत्तको भूख-प्यासजन्य अनेक कष्ट सहने पड़े । भाग्यवश तिलकपुर पट्टन पहुॅचनेपर तिलकासुन्दरी नामक कन्यासे उसका विवाह हुआ । इधर वधुदत्तका जहाज चोरोंने लूट लिया । भविष्यदत्त तिलकासुन्दरीके साथ हस्तिनापुरको लौट रहा था कि मार्गमे दयनीय दशामे बन्धुदत्त भी आ मिला। भविष्य