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हिन्दी - जैन-साहित्य-परिशीलन
निष्पक्ष भावसे ही विचार व्यक्त किये हैं, फिर भी संभव है कि मेरी अल्पजाके कारण न्याय होनेमें कुछ कमी रह गयी हो ।
उन सभी ग्रन्थकारोंके प्रति अपना आभार प्रकट करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ, जिनकी रचनाओंसे मैंने सहायता ली है । विशेषतः श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीका, जिनकी रचना 'हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास से मुझे प्रेरणा मिली तथा परिशिष्टमें कवि और साहित्यकारोंका परिचय लिखनेके लिए सामग्री भी ।
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इस द्वितीय भाग कायम भी प्रथम भागके सभी सहायक बन्धुओंसे सहायता मिली है, अतः में उन सबके प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ ।
जैन सिद्धान्त भवन श्री महावीर जयन्ती
१९५६
नेमिचन्द्र शास्त्री