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परिशिष्ट
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दिन एक विनती या स्तुति रचकर ही भगवान्के दर्शन करते । इनके साथ देवीदास नामक व्यक्ति रहते थे। इन्हें पद्मावती देवीका इष्ट था। यह शरीरसे भी बड़े बली थे। बड़े-बड़े पहलवान भी इनसे भयभीत रहते थे । इनके जीवनमे अनेक चमत्कारी घटनाएँ घटी हैं । इनके दो पुत्र थे अजितदास और शिखरचद । अजितदासका विवाह आरामे बाबू मुन्नीलालनीकी सुपुत्रीसे हुआ था | अतः अजितदासजी आरा ही आकर बस गये। यह भी पिताके समान कवि थे । इनकी रचनाएँ भी उपलब्ध हैं। इनके द्वारा रचित निम्न अन्य है--प्रवचनसार, तीस चौबीसी पाठ, चौबीसी पाठ, छन्दशतक, अहत्यासाकेवली और वृन्दावनविलास (फुटकर कविताओका सकलन) इनके द्वारा रचित एक जैन रामायण भी है जिसकी अधूरी प्रति आराकै एक सज्जनके पास है।
वुधजन-इनका पूरा नाम विरधीचन्द था । यह जयपुरके निवासी खण्डेलवाल जैन थे। यह अच्छे कवि थे। इनका समय अनुमानतः उन्नीसवीं शताब्दीका मध्यभाग है । कविता करनेकी अच्छी प्रतिमा थी। इनके द्वारा विरचित निम्न चार अन्य उपलब्ध है १-तत्वार्थबोध (१८७१), २-बुधजनसतसई (१८८१), पञ्चास्तिकाय (१८९१) और बुधननाविलास (१८९२)। इनकी मापापर मारवाड़ीका प्रभाव है। किन्तु पदोंकी भापा तथा बुधजन सतसईकी भाषा हिन्दी है।
मनरंग-इनका पूरा नाम मनरगलल है। यह कन्नौजके निवासी पल्लीवाल थे | इनके पिताका नाम कनौजीलाल और माताका नाम देवकी था । कन्नौजमे गोपालदासजी नामक एक धर्मात्मा सज्जन निवास करते थे। इनके अनुरोधसे ही इन्होने चौवीसीपाठकी रचना की थी। इस प्रसिद्ध पाठका रचनाकाल संवत् १८५७ है। इसके अतिरिक्त इनके अन्य मी उपलब्ध हैं-नेमिचन्द्रिका, सतव्यसन चरित्र, सप्तर्षि पूजा एव शिखरसम्मेदाचलमाहास्य । शिखरसम्मेदाचल्माहात्म्यका रचनाकाल सवत् १८८९ है।