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________________ हिन्दी - जैन- साहित्य-परिशीलन सकल अथिर लखि परवेश परकृत, धरत रतन जिन भनित अचलधृत | इसी प्रकार गीता प्रकरण सप्तक और दण्डक प्रकरणमे अनेक रमणीय उदाहरण प्रस्तुत किये हैं । कविकी इस रचनासे छन्दशास्त्रका ज्ञान प्राप्त करनेमे पाठकोको अत्यन्त सहूलियत होगी । अशोकपुष्पमञ्जरी छन्द, जिसमे ३१ वर्ण एक गुरु एक लघुक्रमसे होते है, का कितना सुन्दर और सरस निरूपण किया है । २४० केवली जिनेशकी प्रभावना अचिंत मिंत, कंज पे रहें सु भन्तरिच्छ पाद कंन री । और विडाल मोर व्याल वैर टाल टाल, भूप हैं जहाँ सुमीन है निचीत भीति मंजरी ॥ अंग-हीन अंग पाय, हर्प सो कहा न जाय, नैनहीन नैन पाय मंजु कंज विजरी ॥ और प्रातिहार्थकी कथा कहा कहै सुवृन्द, थोक शोकको हरै अशोकपुष्पमंजरी ॥ इसी प्रकार अनगशेखर, जलहरन, मनहरन आदि छन्दोका सोदाहरण लक्षण १०९ पद्य में बतलाया गया है । हिन्दी भाषामें जैन कवियोंने छन्दो- विषयक अनेक रचनाएँ लिखी हैं, इनमे कई रचनाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । कोप विपयक हिन्दी ग्रन्थोमे महाकवि बनारसीदासकी नाममाला, केसरकीर्त्तिका नामरत्नाकर, विनयसागरकी अनेकार्थनाममाला और चेतनविदयकी आतम-बोधनाममाला कोप 1 प्रसिद्ध है । बनारसीदासकी नाममाला' हिन्दी भाषाका शब्दभण्डार बढ़ाने के १. संपादक जुगलकिशोर मुस्तार, प्रकाशक- वीर सेवामन्दिर सरजि० सहारनपुर । साधा,
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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