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ऐतिहासिक गीतिकाव्य
नित नित कुमर बाधह बहुलक्खणि सुरतरु नउ जिमि कंदरे। नमणी अनोपम निलवट सोहइ, बदन पूनम नउ चंद रे॥ सहुभ सजन भगतावी भगतइ, मेलि बहु परिवार रे । 'चोलउ' नाम दियउ मन रंगइ, सुपन तणइ अनुसारि रे ॥ सहिम समाण मिलि मात पासह सरह 'बच्छराज कुल दीव रे। 'सामल' नाम धरि हुलरावइ, सुखि बोलइ चिरजीव रे ॥
गुरुओंके चातुर्मासोका वर्णन, सघका वर्णन तथा उनके धर्मोपदेश और धर्म प्रभावनाका वर्णन इन ऐतिहासिक गीतोमें सुन्दर हुआ है। अधिकाश-गीतोका एक विशाल संग्रह 'ऐतिहासिक जैन काव्यसग्रह' के नामसे श्री अगरचद नाहटा और श्री मॅवरलाल नाहटाके सम्णदकत्वमे प्रकाशित हो चुका है। इस सग्रहके सभी गीत राग-रागनियोसे युक्त हैं। कर्मगीतोंमें ६ राग और ३६ रागनियोका समावेश किया गया है।