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________________ दौलत - जैनपदसंग्रह | पुलकित, पदन मदन अरिहारी । त्रिभु० || ३ || शूल दुर्कुल न बाला माला, मुनि मन मोद प्रसारी । अरुन न नैन न सैन भ्रम न न, बैंक न लॅक सम्हारी । त्रिभु० ॥ ४ ॥ तातै विधि विभाष क्रोधादि न, लखियत हे जगतारी । पूजत पातकपुंज पत्तावत, ध्यावत शिषविस्तारी । त्रिभु० || ५ || कामधेनु सुरतरु चितामनि, इकभव सुखकरतारी । तुम छवि लखत मोदतें जो सुर, सो तुमपद दातारी | त्रिभु० ॥ ६ ॥ महिमा कहत न लहत पारसुर, गुरुहूकी बुषि हारो । और कहै किम दौळ चहै इम, देहु दशा तुपधारी || त्रिभु० ॥ ७ ॥ ७४ ११२ जिन छवि तेरी यह, घन जगतारन | जिन छवि० ।। टेक ॥ मूळ न फूलै दुकूल त्रिशूल न, शमदमकारन भ्रमतम- ' वारन | जिन० ॥ १ ॥ जाकी प्रभुता की महिमातें सुरंनधी शिता लागत सार न । अवलोकत भविथोक मोख मग, चरत वरत निजनिधि उरधारन | जिन० ॥ २ ॥ जजत भजत अघ तौ को अचरज ? समकित पावन भावनकारन । तासु सेव फल एव चहत निव, दौलत जाके सुगुन उचारन ॥ जिन छवि० ॥ ३ ॥ १ त्रिशूल १२ वा । ३ कमर । ४. जटा ना बल्कल । ५ फूलों की माला । ६ वल । ७, इन्द्रपणा । ८ आपके नेसे यदि पाप भागते हैं, तो इसमें क्या आचर्य है ? 1
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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