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________________ दौलत-मैनपदसंग्रह | aभाव न चाख्यौ, परपम्ननि मति सानो || मानत० ॥ १॥ भव असारता लखे न क्यों जह नृप है क्रेमि विदधानी । सघन निधन नृप दास स्वजन रिपु, दुसिंगा हरिसे पानी || मानत० || २ || देह एह गेंद-गेह ने इस है यह विपति निशानी । जड मलीन छिनतीन करमकृत, -बन्धन शिवसुखहानी | मानत० ॥ ३ ॥ चाहल्वलन ईंधन-विधि-वन घन, आकुलना कुलग्यानी | ज्ञान-सुवा सर शोपन रवि ये, विषय अमित मृतुदानी | मानत० ॥ ४ ॥ य लखि भव-तन मोग विरचि करि, निजहित सुन विनानी । तज्ञ रुराग दोळ अत्र अवसर, यह जिनचन्द्र वखानी | मानत० ॥ ५ ॥ ? जानत क्यों नहि रे, हे न‍ आतपन्नानी । जानत० ॥ टेक ॥ राजदीप पुद्गलकी संपति, निश्च शुद्धनिशाना | जानत० ॥ १ ॥ जाय नरकपशुना मुरगतिमें, यह परजाय विरानी | सिद्धमरूप मा अविनाशी, मान्न विरले मानी ॥ जानत० ॥ २ ॥ कियो न काहू हौं न कोई, गुरु-शिस फौन कहानी | जनममरनमलरहित विमल है, कोचविना जिपि १ कीट । विष्टाके स्थानमें । ३ कृष्णनारायण खरी । ४ रोगका छ ५ मृत्यु ।
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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