SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ tea-जैनपदसंग्रह | ५५ ८० हम तो कनहूँ न हित उपजाये। मुकुल-सुदेव-गुरु-सुसंग दित, कारन पाय गमाये ! हम तो० ॥ टेक ॥ ष्यों शिशु नाचत, आप न माचत, लखनहार बौराये । त्यों श्रुत वांचव चाप न राचत, औरनको समाये || हम तो० ॥ १ ॥ सुजस-लाहकी चाह न तज निज, मता लखि दरखाये । विषय तजे न रेंजे निज पदमें, परपद अपद लुमाये ॥ हम तो० ॥ २ ॥ पापत्याग बिन जप न कीन्हों, सुनचाप-तप ताये । चेतन तनको कहते मिन पर, देह सनेही पाये । उप सो० ॥ ३ ॥ यह चिर भूळ भई हमरी अब कहा होन पछताये । दौल मजों भवभोग रचौ मन, योँ गुरु वचन सुनाये ॥ हम तो० ॥ ४ ॥ ८१ हम तो कबहुं न निजगुन माये । तन निज मान जान तनदुखव में विलखे हरवाये | हम तो० ॥ टेक ॥ तनको मरन मरन कखि उनको, धरन मान हम जीये। या भ्रम मौर परे मबनल चिर, चहुंगति विपत बहाये | हप तो० || १ || दरशनोवा न चाय, विविध विषय-विष खाये । मुगुरु दयाळ सीख दड़ पुनि पुनि, सुनि मुनि घर रमग्न हुए १ मग्न होते । - शाम पढते । ३ सुनके साम की। -५ जिनदेनका जपन । ६ मनवा अर्थात् कामदेवकी तपनमें राम " ७ भावना की उत्पन्न हुए ।
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy