________________
दौलत-बैनपदसंग्रह ! - २५ नहीं मैं विपति सही जो, घर पर अमित शरीर । तुम गुनचिंतत नत्रत तया भय, ज्यों धन चळन समीर ॥ हमारी०॥ ३ ॥ कोटवारकी अरज यही है, मैं दुख सहूं अधीर । हरहु वेदनाफन्द दौलको, कनर फर्म जंजीर ।। हमारी० ॥४॥
सब मिल देखो हेली म्हारी है, निसलामाल वदन रसाल । सब० ॥टेक ॥ भाये जुनसमवसरन कपाल, विचरत अभय व्याल पराल, फलित भई सकल तरुमात । सब० ॥१॥ नैन न हाल भृकुटी न चाल, वैन विदारे विभ्रमजाल, छवि लखि होत संन निहाल । सब० ॥ २॥ वंदन काम सान सपाज, संग लिये स्वजन पुरजन ब्राज, श्रेगिक चलत है नरपाल । सब० ॥ ६॥चों कहि मोदजुच पुरवाल, सखन चाली चरम जिनपाल, दौलत नमत घर घर माल ॥ सय० ॥ ४ ॥
अरिजरस हनन प्रभु अरहन, जैवतो जगमें । देव प्रदेव सेव कर जाकी, धरहि बोलि पगमें ॥ अरिरज० ॥टेक ॥ भो तन अष्टोचरसहस्र लक्खन लखि कलिल शमें । जो चदी. पशिखा मुनि विचरें शिवमारगमें ॥ भरिग्नः ॥ १ ॥ मास पासते शोडारन गुन, प्रगट भयो नगमें । व्यालपराल - मोह । २ शानदर्शनावरणी । ३ अन्तराय ! ४ भगोकनृप में ।
-
-
-
-