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________________ दौलत - नैनपदसंग्रह | २७ जय शिव - कामिनि कन्त वीरे भगवन्त मनन्तसुखाकर हैं । विधि-गिरि-गंजन घुषमनरंजन, भ्रमतमभजन भाकर हैं । ॥ जय० ॥ टेक ॥ जिनउपदेश्यो दुविधधर्म जो सो सुरसिद्धिरमाकर हैं । भवि उर- कुमुदनि. मोदन wear हरन अनूप निशांकर हैं ॥ जय० ॥ १ ॥ परम विरागि रहैं जगतें पै, जगतजंतुरक्षाकर हैं । इन्द्र फणीन्द्र खगेन्द्र चन्द्र जग, -ठाकर ताके चाकर हैं ॥ जय० ॥ २ ॥ जासु अनन्त सुगुनमणिगन नित गनत गनीगन थाक रहें । जा पद नवकेष लिलब्धि सु, कमलाको कपलाकर हैं ॥ जय० ॥ ३ ॥ जाकै ध्यान- कृपान रागरुष, पासहरन समताकर हैं । दौलनमै कर नोर हरन भव बाधा शिवराधाकर हैं ॥ जय० ॥ ४ ॥ २२ "" २९ : जय श्रीवीर जिनेन्द्रचन्द्र, शतइन्द्रबंध जगतारं । 'जय० ॥ टेक ॥ सिद्धारयकुळ-कमल-भ्रमळ - रवि, भवभूधरपविभारं । गुनमनिकोष अदोष मोषपति, विपिन कषायतुषारं ॥ जय० ॥ १ ॥ मदनकदन शिवसदन ↓ १ वद्धमान भगवान । २ कर्मरूपी पर्वतके नष्ट करनेवाले । ३ सूर्य । ४ दो अकारका धर्म गृहस्थ और मुनिका । ५ स्वर्ग और मोक्ष लक्ष्मीका करनेवाल 1 हैं । ६- चन्द्रमा । ७ ध्यानरूपी तरवारसे रागद्वेषकी फासीको काटनेवाला । ८ ससाररूपी पर्वतको बडे भारी बज्रके समान १९ कषायरूपी धनको तुष
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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