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दौलत जैनपदसंग्रह। । चिद्विळास , सुखरामकाशवितरन त्रिमोने-दिनेशा
है ॥ टेक ॥ दुर्निवार कदैपसर्पको दर्पविदरन खगेगा है।
कुंठ-अठ-कमठ-उपद्रवमयसमीर-सुवर्णनगेशा है । । पास० ॥१॥मान अनन्त अनन्त दर्श बल, सुख अनन्त
पदमेशा है । स्वानुभूति-रमनी-वर भवि-भव-गिर पवि शिव-सदमेशा है ॥ पास० ॥२॥ऋषि मुनि यति अनगार सदा तिप्त, सेवत पादशेसा है । बदनचन्द्र मरें गिरामृत, नाशन जन्म-कलेशा है ॥ पास० ॥३॥ नाममंत्र जे जपें भव्य विन, अघहि नशन अशेषा है । सुर अहमिन्द्र खगेन्द्र चन्द्र है, अनुक्रम होहिं मिनेशा है ॥ पास० ॥ ४ ॥ लोक-लोक-य-नायक पं, स्त निजमावचिदेशा है । रागविना सेवकजन-नारक, मारके मोह न देपा है॥ पास० ॥५॥ भद्रसमुद्रविवर्दन अद्भुत पूरनचन्द्र सुवेशा है ।दौल नने पद तासु, जासु, शिवथल समेदअचलेशा है ।। पान० ॥ ६ ॥
१वीन लोकके सूर्य । २ कामदेवरूपी सपको। ३ गस्लपक्षी। ५ दुध, शठ, ऐसे कमठके उपद्रवरूपी प्रलयकालकी आधीको सहन करने. पा मेरुपर्वत हो। ५ लक्ष्मीके ईश। ६ स्वानुमवरूपी स्त्रीके गुलद । ७ भन्योंके संसाररूपी पर्वतके नए करनेको पत्रके समान ! ८ मोक्ष माल मालिक । चरणकमल । १० वचनरूपी भमृत । ११ सर । १२ मोह मारनेवाले। १३ पम्मेदमियर। . ,