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________________ ७५ दश-वैकालिक-सूत्र। अथ पंचम अध्ययन द्वितीयोद्देश । प्रथमोक्त विधि किम्बा वक्तव्य विषये। करिवेक गवेपणा समाहित हये ॥३ भिक्षाकाले साधुगण भिक्षाय याइवे । भिक्षाशेपें यथास्थाने फिरिया आसिवे ।। स्वाध्याय भिक्षादि कार्य निर्दिष्ट समये । करिवेक साधुजन संयत - हृदये ।।४ अकाले श्रावक गृहे भिक्षार लागिया । याइतेछे एक साधु देखिते पाइया ।। बोलतेछे अन्य साधु ताहाके, विनये । याओ तुमि भिक्षा लाभे केन असमये ।। विचार करना तुमि निज कालाकाल । योहाते शास्त्रर दृष्टि रहेछे विशाल । करितेछ इहा द्वारा आत्मार पीड़न । प्रामादिर निन्दा-कथा वलि साक्षण ।।५ पूर्व उक्त दोष साधु अकाल भ्रमणे। वुझिया केमने चले वलिव एखने ॥ भिक्षाकाले भिक्षातरे साधरा याइवे। . यथाशक्तिं पुरुपार्थ प्रयोग करिवे॥ . अलाभे भिक्षार साधु चिन्ता ना करिवे। आराधना करि कष्ट यतने सहिवे ॥६ भक्षण - कारणे पथे अनेक प्रकार। । शोभना-शोभन प्राणी हेरि शुद्धाचार ।।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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