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________________ दश-कालिक-सूत्र । अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश। आर्द्र शुष्क कुलचूर्ण आर सिद्ध माप । अल्पमात्र विविदत्त, शुद्ध यवमास ।। निन्दिवेना अवहेलि उक्त खाद्य चये। अनिदानजीवी साधु संयत थाकिये ।। खटिका चटिकादि विना याहा प्राप्त । संयोजन आदि दोष हते याहा मुक्त ।। सेइ रूप खाद्य साधु बुझिया लइवे । विशुद्ध आहार्य साधु सादरेभुञ्जिवे ||६८188 स्वार्थहीन भिक्षादाता निःस्वार्थ भिक्षुक ।' जगते दुर्लभ अति उभये भाबुक ।। निःस्वार्थ ये भिक्षा देय निःस्वार्थे ये लय । परकाले शुभगति दोहे प्राप्त हय ॥१०० तीर्थकर महापूज्य साधक याहारा। दियाछन उपदेश हितार्थे ताहारा॥ स्मरि सेइ उपदेश त्यजि स्व-कल्पना । वलितेछि पूर्वरूप करि ओ धारणा ॥ इति पंचम पिण्डपणाध्यनेर प्रथमोद्देशावचूणि समाप्त ।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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