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दश-वैकालिक-सूत्र ।
अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश ।
तृष्णार निवृत्ति याहा करिवारे नारे। वलिवे ईश जल दिओना आमारे । दात्री हते हेन जल ना करि ग्रहण । अभिप्रेत नहे इहा बलिवे तखन ॥७६ तन्मनस्क अन्यभावे थाकि साधुजन । भ्रमे यदि उक्त जल करेण ग्रहण ।। ना करिवे पान उहा तृपा- हइया। करावेना समर्पण अन्यके भुलिया ।।८० एकान्न निर्जीव स्थान करि निरीक्षण । निक्षेपिवे त्याज्य जल, करिया यतन ।। . निजेर वसतिस्थाने करि आगमन । प्रतिक्रम करिवेक सिद्ध तपोधन ।।८१ प्रामान्तरे भिक्षा लभि साधक संयत । पिपासादि द्वारा हले अति अभिभूत ।। भोजनेर इच्छा यदि मने हय तार । साधर बसति सेथा ना थाके आवार।। भित्तिमूल मठादि वा जिया लइवे । धूलि आर बीजादिर वर्जन करिवे ॥८२ प्राज्ञ साधु भूस्वामीर आदेश लइया। ईर्ष्या प्रतिक्रम करि मुखे वस्त्र दिया | यथारीति हस्तादिर करिया मार्जन। करिवे संयत हये आहार ग्रहण ||८३