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दश-वकालिक-सूत्र ।
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अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश ।
खाद्य-जल-वृद्धि-भये अग्निर उत्तापे । उहाते किश्चित् जल यदि वा निक्षेपे ।। करिवेना कभु साधु से खाद्य - ग्रहण । अभिप्रेत नहे भिक्षा वलिवे तखन ।।६३२६४ वर्षाकाले पारापारे कोन स्थाने यदि । लम्बा काष्ठ, वड़ शिला, जमा इष्टकादि । देखे साधु कम्पमान, गमन - समये । साधु तथा याइवेना जीवहिंसा-भये ।। ये पथ प्रकाशशून्य अन्तःसार-हीन । जितेन्द्रिय याइवेना सेपथे कखन ॥६श६६ निर्गमन सिडि पीठ चोकी वा खाटिया । कीलक कखन दात्री उक्रेते तुलिया ।। हादि उपरे उठि साधुर कारण । आहा- पानीय यदि करे आनयन ।। अति दुरे आरोहण करि सिडि. योगे। हयेन पतित यदि भूमि निम्न-भागे। हस्त पाद भन्न हये हिंसे पृथ्वी जीवे । पृथिवो आश्रित किम्बा अन्य जीवे भवे । एत वड़ दोप साधु जानिले कखन॥ उच्चाहृत भिक्षा कभु ना करे ग्रहण ॥६७६८ सूरण प्रभृति कन्द कटुपत्र शाक। विदारिका आदि मूल, कांचा वा आद्रक ।।