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दश-वैकालिक-सूत्र |
अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश |
लइवेना सेइ द्रव्य कभु साधुजन । कल्पित आहा नहे बलिये तखन ||५६ ६० पानाशन खाद्य स्वाद्य अग्निर उपरे । रक्षित पूरवे आछे गृहस्थ - आगारे ॥ उक्त अग्नि स्पर्श करि यदि भ्रमक्रमे । आहा पानीय देय सरल साधुके ॥ ना लइवे उहा कभु विज्ञ साधुजन । अकल्पित खाद्य त्याज्य बलिये तखन ||६१६२ चुल्ली मध्ये देय यदि पाचक हइया । अग्निर निर्माण भये काष्ठ वाड़ाइया ॥ खाद्य र जलीय अंश शोपण भयेते । वाहिर करिते थाके, काष्ट आँखा हते ॥ यदि वा सहसा हय अभिरनिर्वाण । भयेते चुल्लीते काष्ठ करे वा प्रदान || अग्नितापे पात्रजल उथलिया पड़े । उहा हते किछु जल राखे अन्याधारे ॥ ये पात्रे व्यञ्जन छिल ताहा आनि पुनः । राखे यदि अन्य पात्रे गृहस्थ कखन ॥ पूर्वोक्त विधानेकृत पानीय भोजन । ना लइवे विज्ञ साधु भ्रमेओ कखन ॥ आंखार उपरे खाद्य राखिया यतने । भिक्षा दिते उहा ह' ते यदि किछु आने ॥
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