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दश-वैकालिक सूत्र |
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अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश ।
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हस्तादि अर्पित भिक्षा दूषित वुझिने । अभिप्रेत नहे भिक्षा साधकं वलिवे ॥३२ विन्दु विन्दु जल क्षरे यार हस्त हते । सजीव सलिल रय याहार करेते ॥ धूलि वा कदमभय करतल यार' । इस्तमध्ये यार था हिङ्ग पांशुक्षार ॥ हरिताल मनःशिला किम्बा रसाञ्जन । इस्तेते रहेछे यार समुद्र - लवण ॥ सेइ हस्ते भिक्षा दिले कभुं ना लइवे । अभिप्रेत नहे भिक्षा बलिया चलिवे ॥३३ धातु, पीत, श्वेत माटी फिटकारी आर आम ओ तण्डुल, पिष्ट, थाके करे यार ॥ हरितादि द्रव्य, शाक, भ्रष्ट द्रव्यं चय । " मसल्या - जड़ित हस्त, यदि दृष्ट हय ॥ व्यञ्जन समूहे युक्त, अलिप्त वा यार । करतल, दृष्ट हयं कालेते भिक्षार ॥ सेइ हस्ते भिक्षा दिले लवेना कखन । अभिप्रेत हे भिक्षा व लिंवे तखन ॥३४ अन्नादि - अलिप्त हस्ते हाता वा भाजने । भिक्षा देन श्रावकेरा नित्य साधुगणे ॥ भिक्षा दान परे जले, करे प्रक्षालन । यदि हस्त हातां, भ्रमे अथवा 'भाजन ||
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