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दश-वैकालिक-सूत्र ।
अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश । निषेध गमने कोथा साधुर एक्षणे । वर्णना करिव ताहा आगम वचने । याइवे ना कभु साधु वेश्यागृह पाशे। कलुषित सेइ स्थान पापेर परशे॥ अष्टाङ्गमैथुनत्याग, ब्रह्मचर्या नाम । याहार आश्रये साधु हन सिद्धकाम ॥ वेश्याद्वारे उपजिवे चित्तरे विकार । परिणामे त्यजिवेक साधु शुद्धाचार ॥ जितेन्द्रिय साधू हन ब्रह्मचारत । ध्यान-जप-परायण थाकेन सतत ।। सेइ हेतु साधुजन वेश्यागृह-पाशे। याइवेना कोन काले कार्य-व्यपदेशे || वेश्यागृहे साधुजन करिले गमन । पुनः पुनः संसर्गते हइवे पतन ।। पोड़ा विराधना हय साधर निश्चय। द्रव्य-चारित्रे जन्मे अत्यन्त संशय ॥१० मोक्षार्थी एकान्तवासी संयत साधक । वेश्यागृह जानि सदा दुर्गति-कारक ॥ वर्जन करिवे उहा वहु दूर हते। ना याइवे कदापिओ वेश्यार गृहेते ॥११ नव प्रसविनी-गाभी कुक्कुर वलदः । वालकेर क्रीड़ास्थान घोटक द्विरद.॥