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दश-वैकालिक सूत्र |
अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश ।
भिक्षार समय हले साधुरा केमने । याइवेन शुद्धाचार-गृहस्थ - भवने ॥ वर्णिव अधुना सेइ प्रकृत विधान । पालि याहा साधुगण हवे फुल्लप्राण ॥ गमन करिवे साधु पथे अति धीरे । उद्वेग - रहित हये मुख्य - भिक्षा-तरे ॥ ग्रामे वा नगरे भिक्षा करिते ग्रहण | शान्त हये स्थिर चित्त करिबे गमन ॥२ गमन-समये साधु शरीर प्रमाण । निरखिवे अग्रवन्त गमनेर स्थान ॥ पृथ्वीकाय अपस्काय वनस्पतिकाय | गमनसमये प्राणी बहु देखा याय || वाचाइया उहादेर प्राण मूल्यवान् । चलिवे साभीष्ट - पथे शास्त्रेर विधान ||३ ऊर्ध्व काष्ठ गर्त्त आदि उच्चनीचस्थान । कर्दम संयुक्त पथ करिव वजन ॥ पाषाण वा काष्ठ युक्त पथे साधुगण । ना या इवे, अन्यपथे करिवे गमन ॥ ना थाकिले अन्यपथ सेपथे चलिवे | जीवरक्षा करि साधु सतर्फे यावे ॥४ पूरव कथित स्थाने पतित हइया । पाद प्रस्खलने किम्बा वेदना - पाइया ||