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________________ [२] पूज्यपाद ऋषभादि त्रयोविशंति तीर्थंकर आध्यात्मिकतार समुज्वलालोके भारतभूमिके परमशान्तिर पथे सञ्चालित कराइया एक अभिनव युगेर प्राधान्य सर्व्वत्र प्रचार करेन । जैनगण साधारणतः दुइभागे विभक्त । श्वेताम्वर ओ दिगम्वर । श्वेताम्वरगण तिनभागे विभक्त :- यथा; मूर्तिपूजक, स्थानकवासी एवं तेरापन्थी । कर्म्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तियोग मोक्षलाभेर परम सहायक इहा वहूशास्त्रे उल्लिखित आहे | जैनाचार्यगण उक्त त्रिविधयोगेर प्राधान्य उपलब्धि करिया एवं उक्त त्रिवेणीर पूतधाराय सिञ्चित हइया मोक्षार्णवेर अनन्त शान्तिर सुशीतल प्रवाहे निजदेह - मनप्राण अर्पण करिया छिलेन । जैनदर्शने उक्त त्रिविध योगेर प्राधान्यइ विद्यमान आछे । ज्ञानमार्गेर प्राधान्य वर्णनाकाले जैनाचार्यगण वलियाछेन " ज्ञानदर्शन चारित्राणि मोक्षमार्गाः” ज्ञान दर्शन ओ चारित्र मोक्षमार्गगमनेर एकमात्र पथ । जैनदर्शने जैन तीर्थंकरगण गुरुदेवर स्तुति विहित आछे, उहाइ भक्तियोग | साधुदेर सन्यास ओ तपस्या एवं श्रावकर तपस्याओ नियम पालनइ कर्म्मयोग | अतएव वलिते हइवे ये जैन दर्शने उक्त त्रिविधयोगेर समावेश रहियाछे । शुभाशुभ कर्म्मवद्धन हइते स्वकीय आत्माके मुक्त कराइया उहार विशुद्धि सम्पादन मोक्षप्राप्तिर एकमात्र उपाय इहाइ जैन- दार्शनिकगणैर अभिमत । जैनशास्त्रे उल्लिखित आहे : "दग्घेवीजे यथाऽत्यन्तं प्रादुर्भवति नाकुरः । कर्म्मवीजे तथादग्धे न रोहति भवाङ्कुरः ॥” ये प्रकार शस्यवीज दग्धीभूत हइले उहार अङ्कुरोद्गम हयना सेइरुप याहार चर्नवीज दग्धीभूत हइयाछे ताहार मायाच्छन्न संसारे जन्मलाभ करिते
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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