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दश - वैकालिक सूत्र |
तृतीय अध्ययन |
संयमे सतत युक्त निर्गन्थ सुर्याति । महावीर महाप्राण सदा शुद्ध मति ॥ अप्रतिवद्ध - विहार पवन - सदृश । करेन सतत भवे तपः परवश ||१०
पांचटि आस्रवे अतितत्त्वज्ञ सतत । त्रिगुप्तिते सुसंयत पटकाये संयत ॥ जितेन्द्रिय रूजुमति निर्गन्थं याहारा । अनाचीर्ण दोपमुक्त हयेन ताहारा ॥ मिथ्यात्व अव्रत आर प्रमाद कपाय | इहाई अशुभयोग आसव निश्चय ॥ पञ्चास्रवत्यागे सदा वद्धपरिकर । हइवेन साधुजन स्वाध्याय तत्पर ॥ मनोगुप्ति वाक्यगुप्ति कायगुप्ति आर । त्रिविध विषये नित्य संयम याहार ॥ सर्व्वप्राणि हिंसा त्यजि हइया संयमी । त्यजेन पूर्वोक्त दोप हये मुक्तिकामी ॥ ११ ग्रीष्मे सहे सूर्य्यताप ध्यानस्थ हइया । शीते शंत्य भुञ्ज साधु वसन त्यजिया ॥ वर्षाकाले साधुगण देह सुसंयत । करिया ना भ्रमे कोथा आत्मध्याने रत ॥१२ साधुगण कोन का हन अग्रसर । वलिब अधुना ताहा शुन हितकर ॥
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