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दश-वैकालिक-सूत्र प्रथम अध्ययन । मधुकर यथा भ्रमे भेदबुद्धिहीन । जाति कुल भेद तार तथा हय क्षोण ॥ स्थावरादि स जीवहिते यत्नवान् । तुच्छाहारे परितृप्त हन महाप्राण ।।५ तीर्थकर महापुज्य साधक याहारा । दियाछेन उपदेश हितार्थे ताहारा ।। स्मरि सेइ उपदेश त्यजि स्वकल्पना। चलितेछि पूर्वरूप करिओ धारणा ।। ॥ इति दुम पुष्पिकाध्ययन समाप्त ।।