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दश-वैकालिक-सूत्र।
प्रथम अध्ययन।
विपन्न आत्माके यिनि करेण धारण । श्रेष्ठ हितकारी यिनि सदा सक्षिण | धर्मा नामे तिनि हन विख्यात धराय । अहिंसा संयम तपः धर्म बला याय ॥ जीवहिंसा महापाप सळशास्त्रमते। प्राणीर हननत्याग अहिंसा जगते ।। इन्द्रिय सकल हयं पापेर आलय । पापद्वाररुद्धकारी संयम निश्चय ॥ बहुजन्मे जीव करि कर्म अष्टविध । शोक ताप दुःख देन्य भुजे नानाविध ॥ याहा द्वारा अष्ट कर्म हय सन्तापित । पृथ्वीमाझे ताहा शुद्ध तपः नामे ख्यात ।। . चाह ओ आन्तर तपः हय द्विप्रकार। अनशन आदि वाह्य ध्यानादि आन्तर ।। धरमे आसक्त रय याहार पराण । वाहाके प्रणाम करे देवता प्रधान ॥१