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दश वैकालिक-सूत्र ।
द्वितीय चूलिका। अथवा यथाय भय आछे लांछनार । स्वपक्ष वा परपक्ष हते अविचार ।। विहार चर्याय साधु पूरवेर स्थान । - तेयागिया अन्यस्थाने करिवे प्रस्थान ।। कथित सकल स्थान सदोप जानिवे। आकीर्ण स्थानेते सदा आघात पाइवे ॥ . अपमान स्थाने लाभ हयना काहार। आधा कर्म आदि दोप घटे वारंवार ॥ त्यजिया पूर्वोक्त दोष आहार्य ग्रहण । करिवेक यथारीति यति तपोधन ॥ हस्त मात्रकादि द्वारा संसृष्ट विधिते । भिक्षा आहरिवे भिक्षु जनशास्त्र-मते॥ निरवद्य आहारते हात लागाइवे । सावध वस्तुते हात कभु ना फेलिवे ॥६ मद्य मांस खाइवेना कभु साधुजन । करिवेना परद्वष भ्रमेओ कखन ।। सरस विकृत घृत आर दुग्धपान । करिवेना साधुजन पापेरं निदान ।। यातायाते किम्बा परिभोगे विकृतिर । कार्योत्सर्गकारी हवे साधु महावीर ।। वाचनादि कार्ये साधु हवे यत्नशील। पालिवे पूर्वोक्त विधि साधक सुशील ॥७