________________
१६६
दश-वकालिक सूत्र |
प्रथम चूलिका |
हया एवं मोर मोहेर भञ्जन | गृहाभ्रमे आर मोर किवा प्रयोजन ११८ चारित्र्यादि धर्म्म छाड़े भोगेर कारण । ये अनाय्य त्यागी भोगेवद्ध मन || जानेना से परिणाम भावी नराधम । निव्वोय वालक मत छाड़िया संयम ॥१ संयमेर वहिर्देशे करिया गमन । इन्द्रासन छाड़ि यथा इन्द्ररे पतन ॥ सर्व्वं धर्म्म हते तथा साधु भ्रष्ट हन । अनुतन हन परे मोहेर कारण ॥२ संयमादि साधुका करि साधुजन । सुरेन्द्र नरेन्द्र द्वारा सुपूजित हन ॥ किन्तु साधु धर्म्म हते भ्रष्ट यदि हनं । केह नाहि करे तारे सभक्ति पूजन ॥ स्थानच्युत देव यथा सन्तप्त हृदय । धर्मभ्रष्ट तथा साधु अनुतप्त हय ॥३ संयमी पूजित हच तपस्या निरत । धर्म्म भ्रष्ट साधु कभु ना हय पूजित ॥
राज्य भ्रष्ट राजा यथा अनुतप्त हच । ध ये साधु विषण्ण हृदय ॥४ भ्रष्ट धरत साधु हय सदा माननीय । धर्महीन हवे पुनः घृणार स्थानीय ॥