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________________ १६५ दश-वैकालिक-सूत्र । प्रथम चूलिका । गृहावासे गृही दुःखी पापेर कारणे । संयमी निष्पाप हय अहिंसा पालने ॥१३ चौर पशु आदि यथा काम भोग करे। गृहिगण तथा काम भुञ्ज ए संसारे ॥१४ वहु द्वारा पाप पुण्य अनुष्ठित हय । अनुष्ठाता भुने फल नाहिक संशय ।।१५ कुशाग्ररे जलविदुः यथा क्षण रय । मानव जीवन तथा अनित्य निश्चय ।।१३ करियाछि बहुपाप आमि दुराशय । चारिन मोहनीयादि सकल समय ।। अन्यथा हत ना मोर एत अधोगति । ना हइवे लुब्ध मन गृहाश्रम प्रति ।।१७. . करियाछि पाप पुण्य पूरब जनमे। प्रमाद कपाय आदि वशे पडि क्रमे ॥ मिथ्यात्व ओ अविरति कर्म मोर अति । पराक्रान्त हयेछिल ताहे प दुर्गति ॥ कर्मफल मुस्लि परे यदि तपस्याय । पूरव करम करि एकवारे क्षय ।। ताहा हाले मोक्षमार्ग पाइव निश्चय । । कर्म भोग ना करिले नाहि फलोदयः।। संयमइ श्रेष्ठ इथे नाहिक संशय । अष्टादश स्थान सदा कर परिचय ॥ .
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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