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'दश-कालिक-सूत्र ।
नवम अध्ययन।
द्वितीय उद्देश। आगम वा मोक्षरूप अनन्त हितेर। कामनाय, साधु भिक्षु हये अग्रसर । गुरुके करिवें भक्ति मोक्षेर कारण । विनीत' आचार्य वाक्यं करिवे पालन ॥१५ आचार्य शय्यार नीचे स्वशय्या पातिवे। आचार्येर पिछे थाकि सर्वदा चलिवे ॥ वसि नीचे आंचाय्यर आसन स्थापिवे। ननं हये संविनयें चरण वन्दुिवे ।। . वंद्धाञ्जलि हये सदा साधक विनीत। गुरुके पूजिवे हये भक्ति श्रद्धान्वित ॥१७ स्वदेह पात्रादि द्वारा गुरुर शरीरे। पात्रे वा आघात करि बलिवे अचिरे । हे पूज्य आमार दोष क्षम कृपा करि ।
करिवना एइरूपं विनय विस्मरि ॥१८ · अशिष्ट वलंद करे रथेर वहन । आरीदण्डै वद्ध हये' काष्ठेते येमन ॥
आगम शास्त्रेते अज्ञ कर्त्तव्यविहीन । तथा शिष्य दुवुद्धि परमार्थहीन । आचार्य्यादि अभिहित हये वारंवार। सम्पादन करे कार्य कर्तव्य ताहार ॥१६.