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दक्ष-वैकालिक सूत्र.
नवमं अध्ययन ।
द्वितीय उद्दश । 75
अमर गुह्यक यक्ष सेवकेर न्याय । हइया अविनीतात्मा अति दुःख पाय ॥१६ अमर गुह्यक यक्ष विनीत याहारा । सम्पत्ति सुख्याति सुख भवे पाय तारा ॥ १ उपाध्याय आचाय्यैर शुश्रूषा तत्पर । ताँदेर आदेश पालि यारा अग्रसर !! शिक्षा वृद्धि ताहादेर हइवे अचिरे !.. जलेर सेचन द्वारा वृक्ष यथा वाड़े ॥१२ इहलोके भोग-लाभ धावित हइया । निजेर परेर हित चिन्तन करिया । असंयत गृहिगण थाकि एधराय । येन तत्पर शिल्प - चित्रादि शिक्षाय ||१३ गर्भेश्वर राजपुत्र आदि मुग्धकाय । नियुक्त हइया सदा शिल्पादि शिक्षाय ।। कषाघात उत्सनादि रज्जूरं वन्दन । परिताप सुदारुण पान सर्व्वक्षण ॥ १४ शिल्प शिक्षा पाइवारे ताहारा गुरुके । वन्धादि कारक जानि पूजे इहलोके ॥ सत्कारे वस्त्रादि द्वारा साञ्जलि प्रणाम. ।, करे फुल्लहये आज्ञा पाले अविराम ॥१५
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