SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देश - वैकालिक सूत्र | • अष्टम अध्ययन । गृहि संगे तथा हय सम्बन्ध अस्थिर । राखे ना साधकवर सम्बन्ध गभीर || अणुमात्र वस्तु कभु उन्नत - हृदय । निजेर हितेर लागि करेना सञ्चय ॥ चराचर संरक्षणे साधक सुजन । जितेन्द्रिय संयमेते प्रतिवद्ध हन ॥२४ विपाक प्रतिपादक, क्रोधेर सतत । - वीतराग वाक्य शुनि साधुरा संयत ॥ रुक्ष्मवृत्ति परितुष्ट अल्पाहारी हवे | कदापिओ कार प्रति क्रोध ना करिवे ॥ २५ श्रुति सुखप्रद शब्दे वेनु वीणादिर | करिवेना प्रेमराग साधक सुधीर ॥ दारुण कर्कश स्पर्श शरीर उपरे । पड़िले सहिवे ताहा साधु अकातरे ॥ २६ क्षुधा वा पिपासा साधु शीतोष्ण अरति विपम कर्कश शय्या नानाविध भीति ॥ अव्यथित फुलमने अवश्य सहिवे । देहे दुःख महाफल स्मरण करिवे ॥ २७ अस्तमित दिवाकरे प्रभात पूरवे । मओ आहार्य वस्तु साधु ना चाहिवे । 'वलिवेना कोन कथा अलाभे भिक्षार । अल्पभाषी अल्पभोजी साधु शुद्धाचार । १२१
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy