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________________ दश-वैकालिक-सूत्र। अष्टम अध्ययन करि भालमन्द कथा सतत श्रवण । पहु कार्य विश्वमा हेरि भिक्षु जन ।। विनकारी, दृष्ट श्रुत सेसव विषय । वलिवेना कार काछे संयत-हृदय ।।२० साधकेर श्रुत गोचर विपय । वलिवेना कार काछे साधु महोदय ।। उपधातकारी हय “से चौर इत्यादि। गृहि योग बालक्रीड़ा, गृहरक्षा आदि। उपरोक्त उभयेर करिवे वर्जन । ना करिवं गृहस्थर सम्बन्ध रक्षण ||२१ सर्वगुण युक्त खाद्य इहा चमत्कार। पापयुक्त एइ खाद्य अति कदाहार ।। पृष्ठ वा अपृष्ट हये स्वयं साधक। बलिवेना भालमन्द पापेर जनक ॥२२ साधक लोलुप लाभे उत्तम भोजन । करिवेना, धनिगृहे - भिक्षार्थे गमन ॥ भालमन्द ना भाविया ज्ञात वा अज्ञात । परगृहे याइवेन साधक संयत॥ औद्देशिक क्रीत खाद्य सचित्त आहृत । ' लइवेना साधुवर हइया आहूत ।।२३ . पद्मिनी पत्रेते जल यथा वद्ध नय, पद्मपत्रे स्थित हये सकल समय ;
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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