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________________ ११८ दा-वकालिक सूत्र । अष्टम अध्ययन। व्यजन करे ना साधु आपन शरीरे। वाह्य वा पुद्गले, कभु सुख लाभ तरे 18 कदम्बादि वृक्ष आर दर्भ आदि तृण । काटिवेना छिडिवेना फलादि कखन ।। शस्त्राधात-शून्य वीज साधु तपोधन । ना चाहिवे मने मने भ्रमेअ कखन ।। १० वननिकुञ्ज - मध्ये साधु दूर्वादिते । प्रसारित शाल्यादिर उत्पन्नवीजते । अनन्त शरीर धारि-सचित्त सलिले। वसिवेना काइमध्ये तृणाग्रस्थ जले ॥ ११. वाक्ये कार्ये साधुवर सप्राणिगणे । वर्जन करिवे हिंसा सदा प्रयतने । कमांधीना एइ पृथ्वी सकलेइ कय। भाविले अवश्य हवे वैराग्य उदय ।। १२ नेहारिया वक्ष्यमाण अष्ट सूक्ष्म प्राणी। • सतर्के वसिवे शुवे दाँडाइवे मुनि ।। प्रत्याख्यान परिज्ञा वा ज्ञपरिज्ञा वले। अष्टसूक्ष्मभावगति समस्त बुझिवे ॥ सर्वभूते साधुगण दयाशील हन । इहाते नाहिक कारो संशय कखन ॥१३ दया-परवशे साधु जिज्ञासा करिवे। कि कि हय अष्ट सूक्ष्म प्राणी एइ भवे ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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