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________________ दश-कालिक-सूत्र । अष्टम अध्ययन । त्रिविध करण किम्वा त्रिविधयोगेते । विशुद्ध संयत मुनि तत्पर ध्यानेते ।। मृत्तिका इटेर खण्ड भित्ति शिलातीर। भेदन धर्पण कभु करिवेना धीर । ४ वसिवेना साधुजन सजीव माटीते। अथवा सचित्तधलि-पुर्ण आसनेते ।। भूस्वामीर अभिमत साधक लइवे । यतने मार्जित करि आसने वसिवे ॥५ करिवेना पान साधु सलिल, .संयत । सचित्त उदकहिम-शिला-वृष्टिजात ॥ . त्रिदण्ड उद्वत जल किम्वा उष्णोदक । लइवेन जीवहीन अहिंसा साधक ॥ ६ भिक्षाकाले वृष्टिपाते भिजिले शरीर । वस्त्रादि वा हस्त द्वारा मुलिवेना नीरः।। निरखि स्वकीय देह जलसिक्तमय । करिवेना कभु स्पर्श साधु सहृदय ।। ७ लौह पिण्ड युक्त अग्नि, अगार प्रभृति । काष्ठेर अग्रस्थ वहि अर्चिवा सज्योति ।। करिवेना साधूजन उहा निर्वापण । उत्तजन संवट्टन अथवा कखन।८ तालवृन्त किम्बा पाखा लइया साधुरा । । अथवा पारे पत्रवृक्षशाखा द्वारा।।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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