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दश-वैकालिक-सूत्र ।
सप्तम अध्ययन ।
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ज्ञान दर्शन सम्पन्न सतत संयमी । तपस्याय रत सदा मोक्षपथगामी ॥ एहेन साधुके सर्व्व-साधक सुजन । साधु वलि डाकिवेन शास्त्रेर वचन ॥४६ देवतार मनुष्येर तिर्य्यक् जातिर । । संग्राम नेहारि साधु संयत सुधीर ॥ बलिवेना अमुकेर हउक विजय । अमुकेर ना हउक संग्रामेते जय ||५० अधिकरणादि दोप - हेतु साधुवर । धर्म्म द्वारा अभिभूत हुये कलेवर || कखनओ बलिवेना निम्नोक्त वचन । दोपेर कारण सब करिया चिन्तन | " मलय मारुत आदि, हइवे वर्पण | शीतोष्ण, कुशलराज्ये, सुभिक्ष एखन ॥ कखन वातादि हवे हवेना कखन । उपसर्ग याहा छिल हयेछे दमन" ॥५१ मिथ्यावाद - लाघवादि दोपेते मातिया । मेघ नभः मानवादि आश्रय करिया || बलिवेना मनुष्यके देव देव कथा |
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दोप समाविष्ट ताहा छाड़िवे सर्व्वथा ॥ किरूपे बलिवे मेघ ऊर्ध्वस्थित हेरि ।
वलितेछि शुन साधु दोष परिहरि ॥
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