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दग-वकालिक सूत्र।
सप्तम अध्ययन ।
इहा भिन्न अन्य अर्थ भापा व्यवहारे। यदि वा काहार मन महित करे।। आचार ओ भावदोप-तत्त्वज्ञ सुयति । वलिवेना सेइ भाषा अति शुद्धमति ॥१३ मुर्खके हालिक किम्वा जारजके गोल। दुर्भग, कुकुर, नामे अथवा छीनाल ।। डाकिवेना साधु कभु सत्स्त्रतपण। याहाते आधात मने पाय नरगण ॥१४ बलिवे ना साधु कभु अवाच्य वचन । हे आर्थिक हे प्रार्थिक करि सम्बोधन ।। पिषिमा मासिमा, अम्ब दुहितः कखन । पुत्र पौत्री भागिनेयी करि उचारण ॥१५ हले हले अन्ये भड़े वसुले स्वामिनि । हे होले अधधा गोले अथवा गोमिनि ।। साधुजन ना करिवे उक्त सम्बोधन आवासे पथेते सदा नेहारि स्त्रीजन ॥१६ ज्ञ्चारि बीलोक-नाम साधुरा कहिये। देवदत्त धर्मत्रते वलि सम्बोधिवे॥ विस्मरि प्रकृत नाम गोत्र उल्लिखिवे। प्रशस्य काश्यप गोत्रे इत्यादि वलिवे॥ गुण दोष विचारिया वयस जातिर। आधिपत्य धनेश्वर्य वस्तु प्रभृतिर ॥