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दश-वैकालिक-सूत्र।
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सप्तम अध्ययन।
तेयागिया सेइ भापा धीर साधुवर। वलिवेन शुद्ध भाषा साधनातत्पर ।।५ अज्ञात त्रिकाले अर्थ आछे ये भापार । विचारिया ज्ञात नहे किम्वा तत्त्व तार ।। "निश्चित एरूप उहा" प्रकाशि गौरवे । अङ्गीकार करि उहा कभु ना बलिवे ।।८ शङ्का यदि हय, भापा कखन वलिते । भव्य वर्तमान काले अथवा अतीते ।। "एरूप हइवे भापा" अङ्गीकार करि । कभु ना वलिवे साधु भावार्थ विरमरि ।।६ भव्य वर्तमान काले अथवा अतीते । त्रिकालेइ शङ्काशून्य ये भापा वलिते॥ "एइल्प एइभापा" निर्भये वलिवे। कोनरूप दोपे साधु लिप्त ना हइवे ॥१० ये भापा आघात देय पञ्चमहाभूते । निष्ठुर अत्यन्त याहा असह्य जगते ॥ यदिओ से भापा नरे, सत्य वलि कय । वलिवेना सेइ भापा साधु महोदय ॥११ कानाके साधक कभु वलिवे ना काना.। छिन्न मुन्के क्लीव नामे कभु वलिवेना ।। व्याधित जनेरे साधु वलिवे ना रोगी। चौर्य कार्ये रत जने वलिवे ना दागी ॥१२