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________________ IT HAI अथ बुझि तार परिणाम साधु आजीबन । अग्नि प्रज्वालन-क्रिया करिबे वर्जन ||३६ तालवृन्त आदि द्वारा शरीरे व्यजन । बहु- पाप-दोषयुक्त, बहिर मतन ॥ बुझिया विशेषरूपे साधक सुजन । कभु ना करेन भ्रमे बायुर सेबन ॥ ३७ वृक्षशाखा हेलाइया, तालवृन्ते, पत्रे । व्यजन करेना साधु अभिप्राय मात्रे ॥ अपर जनेर सुखे साधुरा कखन । ना करेन धर्म्मत कहाके व्यजन ||३८ पाद प्रक्षालनकर गामछा, कम्बल । बस्त्र, पत्र, हय याहा साधुर सम्बल || 'उहा द्वारा व्यजनादि करेना कखन । राखेन यतने उहा शुधु तपोधन ॥४६ दुर्गति वर्द्धक अति हिंसा दोप घोर । आचरि किरुप फल हइवे साधुर ॥ 'बुझि तार परिणाम साधु आजीवन । 'वायु- सञ्चालनक्रिया करिवे बर्जन ॥४० त्रिविधकरण योगे संयत साधुरा । तपः समाहित, कायमनो बाक्यं द्वारा ॥ हिंसा ना करवे ' वनस्पति काये । करि उहारे रक्षा' मनप्राण दिये ॥४१ ९३
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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