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________________ ९२ दश-कालिक-सूत्र | अथ षष्ठ अध्ययन । हिंसा ना करिवे कभु जलकायगणे । तत्पर थाकिवे सदा जीवेर रक्षणे ||३० जलकाय - जीवगण — हिंसुक मानव । तदाश्रित --बहुविध - दृश्यादृश्यसव ॥ त्रस स्थावरादि जीवदिगके सतत । हिंसा करे पापमति जगते नियत ॥३१ दुर्गति वर्द्धक अति हिंसा दोष घोर । आचरि किरुप फल हइवे साधुर ॥ बुझि तार परिणाम साधु आजीवन । जलकाय जीवे हिंसा करिवे वर्जन ||३२ चारिदिके तीक्ष्णधार अस्त्र ये प्रकार । हस्तेते ग्रहणे कष्ट हय दुर्निवार ॥ सेईरुपे पापकर अग्निप्रज्वालन । करिते चाहना साधु धर्मपरायण ॥३३ पश्चिम उत्तर पूर्व्व ऊर्ध्वाधः दक्षिण । सर्व्वदिके, अग्निकरे दाह्य रे दहन ॥ ३४ प्राणीर आघात हेतु, अग्नि दुराशय । एaिये काहारओ नाहिक संशय ॥ आली हेतु, शीतनाशे, अग्नि प्रज्वालन । करिवेना कोन काले साधुरा कखन ॥३५ दुर्गतिवर्द्धक, अति हिंसा - दोष घोर । आचरि किरुप फल हइवे साधुर ।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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