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.. . (थोकड़ा नं० ३३) .. .
श्री भगवतीजी सूत्र के तीसरे शतक के पहले उद्देशे में 'देव देवी वैक्रिय करने बाबत श्री अग्निभूतिजी वायुभूतिजी की पूच्छा ( पृच्छा)' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं--. .
१-देवतामें ५ बोल पाते हैं-इन्द्र, सामानिक, तायत्तीसग (बायस्त्रिंशक ), लोकपाल, अग्रमहिषी देवियाँ । वाणव्यन्तर
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*(१) इन्द्रदेवों के स्वामी को इन्द्र कहते हैं। .
(२) सामानिक-जो ऋद्धि अदि में इन्द्र के समान होते हैं किन्तु जिनमें सिर्फ इन्द्रपना नहीं होता; उन्हें सामानिक कहते हैं ।
. (३) तायत्तीसग-(त्रायस्त्रिंशक ) जो देव मन्त्री और पुरोहित का काम करते हैं. वे तायत्तीसग कहलाते हैं। . .... ..
(४) लोकपाल-जो देव सीमा की रक्षा करते हैं, वे लोकपाल कहलाते हैं।
(५) अग्रमहिपी देवी-इन्द्र की पटरानी : अग्रमहिषी देवी कहलाती है। ...... .. ... ... ......