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________________ ५६ ! हैं । अहो भगवान् ! इसका क्या कारण ? हे मौतम 1 जैसे मलीन वस्त्र को शुद्ध पानी से धोने से मैल कट कर वस्त्र उजला सफेद हो जाता है यावत् सुरूप सुवर्णादि १७ बोल शुभपने परिणमते हैं । इसी तरह जीव तप संयम ध्यानादि से कर्मों को छेदते भेदते क्षय करते हैं, यावत् सुरूप सुवर्णादि १७ चोल शुभपने परिणमते हैं । 1 ३ -- अहो भगवान् ? वस्त्र के पुद्गलों का जो उपचय होता है क्या वह प्रयोग से ( पुरुष के प्रयत्न से ) होता है या स्वाभाविक रीति से होता है ? हे गौतम ! प्रयोग से भी होता है और स्वाभाविक रीति से भी होता है । ४ - श्रहो भगवान् ! जिस तरह वस्त्र के प्रयोग से और स्वाभाविक रीति से पुद्गलों का जो उपचय होता है यानी मैल लगता है, क्या उसी तरह से जीवों के जो कर्मों का उपचय होता है वह प्रयोग से और स्वाभाविक रीति से दोनों तरह से होता है ? हे गौतम ! जीव के कर्मों का उपचय प्रयोग से होता है किन्तु स्वाभाविक रीति से नहीं होता अर्थात् जीव के कर्म प्रयोग से लगते हैं, स्वाभाविक रूप से नहीं लगते । अहो भगवान् ! इसका क्या कारण ? हे गौतम ! जीवों के तीन प्रकार के प्रयोग कहे गये हैं—१ मन प्रयोग, २ वचन प्रयोग, ३ काय प्रयोग । इन प्रयोगों से जीव कर्मों का बन्ध करता है । एकेन्द्रिय में प्रयोग पावे एक ( काया प्रयोग ) । विकलेन्द्रिय में प्रयोग पावे
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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