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________________ ६६ : . खाण के ७ भेद-तीन गुणव्रत ( दिशाव्रत, उपभोगपरिभोग परिमाण व्रत, अनर्थदण्डविरमणः व्रतः)। चार शिक्षाव्रत( सामायिक, देशावकाशिक, पौषधोपवास, अतिथि संविभाग . व्रत और * संलेखना)। .. -अहो भगवान् ! क्या जीव मूलगुण पञ्चक्खाणी है या उत्तरगुण पञ्चक्खाणी है या अपञ्चखाणी है ? हे गौतम ! समुच्चय जीव में भांगा पावे तीन । मनुष्य और तियञ्च पञ्चेन्द्रिय में भांगा पावे ३-३, बाकी २२ दण्डक अपञ्चक्खाणी है। अल्पबहुत्व समुच्चय जीव में सब से थोड़े मूलगुण पञ्चक्खाणी, उससे उत्तरगुण पचक्खाणी असंख्यातगुणा, उससे अपचक्खाणी अनन्तगुणा । तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय में सबसे थोड़े मूल .* संलेखना का पूरा नाम है-अपश्चिम .. मारणान्तिक संलेखना जोषणा आराधना-सब से पीछे मरण के समय में शरीर और कषायों को कृश करने के लिये जो तप विशेष स्वीकार कर आराधन किया जाय, उसे अपश्चिम मारणान्तिकःसंलेखना जोषणा आराधना कहते हैं। . देशउत्तरगुणपञ्चक्खाण में दिशांव्रत आदि ३ गुणत्रत ४ शिक्षाबत ये सात गुणें की गिनती की गई है किन्तु संलेखना की गिनती नहीं की गई इसका कारण यह है कि दिशावत आदि सात गुण अवश्य देशोत्तर गुण रूप हैं परन्तु इस संलेखना का नियम नहीं है क्योंकि देशोत्तर गुण वाले को यह देशोत्तर गुण रूप है और सर्वोत्तर गुण वाले के लिए यह सर्वोत्तर गुण रूप है । देशोत्तर गुण वाले को भी अन्त में यह संलेखंना करने योग्य है। यह बात बतलाने के लिए यहां पर आठवीं संले- . खना कही गई है। . . .
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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