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८० ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व सहृदयों की समुचित सहायता ओर सहयोगियों की सच्ची सहानुभूति हुई, तो अवश्य यह अपने कर्तव्य-पालन में सफलमनोरथ होने का यथाशक्य उद्योग करने में शिथिलता न करेगी।
इस पत्रिका का उद्देश्य उसके प्रारम्भिक सम्पादकों ने बड़ा ही महान् रखा था, परन्तु इस प्रतिज्ञा का पालन उन लोगों ने किस तत्परता से किया, इसका अनुमान 'सरस्वती' के प्रथम अंक की विषय-सूची पर दृष्टिपात करके लगाया जा सकता है :
१. भूमिका २. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की जीवनी ३. सिम्बेलीन : शेक्सपियर-रचित नाटक की आख्यायिका का मर्मानुवाद ४. प्रकृति की विचित्रता-कुत्ते के मुंहवाला आदमी ५. काश्मीर-यात्रा ६. कवि-कीत्ति-कलानिधि : अर्जुनमिश्र ७. आलोक-चित्रण अथवा फोटोग्राफी
लेख-संख्या को छोड़कर अन्य सभी लेख सम्पादकों के लिखे हुए थे। पत्रिका का कलेवर प्रारम्भ में १६ से २१ पन्नों तक सीमित रहा। प्रारम्भिक तीन वर्षों तक 'सरस्वती' के सम्पादक उसे विविध-विषय-मण्डित करने की अपनी प्रतिज्ञा का पूर्णतः पालन नहीं कर सके। पहले वर्ष पाँच सम्पादकों के होते हुए भी सम्पादन का पूरा भार बाबू श्यामसुन्दरदास पर ही रहा। सन् १९०१ ई० में केवल श्यामसुन्दरदास ही सम्पादक रह गये। अपने एकाकी सम्पादकत्व में उन्होंने 'सरस्वती' का यथासम्भव कुछ सुधार किया। परन्तु, नागरी-प्रचारिणी सभा का कार्यभार तथा कुछ सुधार आदि अन्य कई महत्त्वपूर्ण कार्यों में व्यस्त होने के कारण वे 'सरस्वती' को अपेक्षित समय और श्रम प्रदान नहीं कर पाते थे। अतएव, उन्होंने सन् १९०१ ई० के अन्त में 'सरस्वती' का सम्पादन करने में अपनी असमर्थता प्रकट कर दी। इस समय तक इण्डियन प्रेस के संचालक बाबू चिन्तामणि घोष की पारखी दृष्टि ने आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी की प्रतिभा को पहचान लिया था। और, उन्होंने श्यामसुन्दरदास के कार्यमुक्त होते ही द्विवेदीजी को पत्रिका के सम्पादन का कार्य सौंप दिया। ___ आचार्य द्विवेदी कवि भी थे, निबन्धकार भी थे, आलोचक भी थे, कहानीकार भी थे और सर्वोपरि वे सम्पादक थे। उनकी साहित्य-साधना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंश उनके 'सरस्वती'-सम्पादक के रूप में ही प्रतिपादित हुआ है । 'सरस्वती' का सम्पादन
१. भूमिका, 'सरस्वती', भाग १, संख्या १, जनवरी, १९०० ई० ।