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________________ १७८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व 'वर्षों तक वे 'सरस्वती' का सम्पादन करते रहे, वह उनके धैर्य, आत्मविश्वास, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का सबसे बड़ा सबूत है। विश्व-साहित्य के इतिहास में ऐसे उदाहरण कम मिलेगे, जब एक व्यक्ति अकेले एक पत्रिका के माध्यम से इतनी लम्बी अवधि तक पूरे साहित्य पर छाया हुआ हो और शासन करता रहा हो।' जिस समय आचार्य द्विवेदीजी ने 'सरस्वती' के सम्पादन का कार्यभार संभाला, 'उस समय तक हिन्दी-पत्रकारिता का स्वरूप बड़ा ही बिखरा हुआ-सा था । 'सरस्वती' के पहले हिन्दी में साहित्यिक पत्रिका का सर्वथा अभाव था और जो एक-आध ऐसी पत्रिकाएँ थीं, उनके साहित्यक स्तर एवं आदर्श के सम्बन्ध में मतवैभिन्न्य व्याप्त था। इसी कारण, उस समय तक हिन्दी-पत्रिकाओं के ग्राहकों-पाठकों की भी कमी थी। इसलिए, द्विवेदीजी ने जब सम्पादन-कार्य प्रारम्भ किया, तब उनके सामने सबसे पहली समस्या हिन्दीभाषी जनता मे पत्र-पत्रिकाओं के प्रति रुचि जागरित करने की आई। इसके लिए उन्होने 'सरस्वती' को यथासम्भव रोचक एव आकर्षक बनाने का प्रयत्न किया और अपने अथक परिश्रम द्वारा हिन्दी का पाठक-वर्ग निर्मित किया। पाठकों की ही भॉति हिनी-जगत् मे विभिन्न विषयों पर लिखनेवाले सुयोग्य लेखकों की भी कमी थी। अच्छी रचनाओं की भी कमी थी। इसी कारण उस समय तक न तो हिन्दी-पत्रकारिता के क्षेत्र में किसी आदर्श सुनियोजित पत्र का उदय हुआ था और न पत्रकारिता की कोई समर्थ वाणी ही मुखरित हुई थी। डॉ० उदयभानु सिंह ने लिखा है : "तत्कालीन दुर्विदग्ध मायावी सम्पादक अपने को देशोपकारवती, नानाकलाकौशलविद्, निःशेषशास्त्रदीक्षित,समस्तभाषापण्डित और सकलकलाविशारद समझते थे। अपने पत्र में बेसिर-पैर की बातें करते, रुपया ऐठने के लिए अनेक प्रकार के वंचक विधान रचते, अपनी दोषराशि को तृणवत् और दूसरों की नन्ही-नन्ही-सी त्रुटि को सुमेरु समझकर अलेख्य लेखों द्वारा अपना और पाठकों का अकारण समय नष्ट करते थे।" ___ उस समय की सम्पादन-कला के बारे में डॉ० माहेश्वरी सिंह 'महेश' ने लिखा है : "उस समय सम्पादन-कला का कोई आदर्श स्थिर नहीं था। बड़े और प्रसिद्ध व्यक्ति के त्रुटिपूर्ण लेख भी छपते थे और छोटे लोगों के विद्वत्तापूर्ण लेखों की भी उपेक्षा होती थी : आलोचनार्थ आये ग्रन्थों का नाममान छाप दिया जाता था। १. श्रीमार्कण्डेय उपाध्याय : 'सरस्वती-पत्रिका और द्विवेदीजी की सम्पादकीय नीति', 'भाषा' : द्विवेदी-स्मृति-अंक, पृ० १२६ ।। २. डॉ० उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग', पृ० १६२ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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