________________
शोध-निष्कर्ष
साहित्येतिहास में युग-विशेष का नामकरण किसी साहित्यकार के नाम पर करना तभी सार्थक होता है, जब उस साहित्यसेवी ने अपने समसामयिक साहित्य के विविध अगों को अभूतपूर्व स्पर्श से स्पन्दित किया हो एवं समस्त साहित्यिक गतिविधियों का नेतृत्व किया हो। भारतेन्दु-युग, द्विवेदी-युग जैसे नामों की यही सार्थकता है। हिन्दी-साहित्य के आधुनिक काल का द्वितीय चरण आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के नेतृत्व से संचालित था, अतएव उक्त अवधि को विद्वानों ने 'द्विवेदीयुग' की संज्ञा दी है । यथा :
"बीसवी शताब्दी के प्रथम पच्चीस वर्षों के साहित्यिक विकास और प्रगति के मन्त्रदाता और पुरोहित द्विवेदीजी ही थे। यह युग वास्तव में द्विवेदी-युग था।''
"सं० १६६० में वे 'सरस्वती' के सम्पादक हुए। उन्होंने एक प्रभविष्णु और सफल सेनापति की भाँति हिन्दी के शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली। यहीं से अराजकता-युग का अन्त और द्विवेदी-युग का प्रारम्भ हुआ।"२ ।। ___ द्विवेदी-युग के नाम से संज्ञापित इस सम्पूर्ण अवधि (सन १९०० -१९२५ ई.) की साहित्यिक गतिविधियों पर तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों का भी पयाप्त प्रभाव पड़ा था। अतएव, आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी एवं उनके समसामयिकों की साहित्यिक उपलब्धियों की वास्तविक पृष्ठभूमि इन्हीं युगीन परिस्थितियों में निहित है । उन्नीसवीं शती के अन्त होते-होते ब्रिटिशशासन भारत-भर में भली भांति स्थापित हो चुका था और लार्ड कर्जन जैसे प्रतिनिधि शासकों की भारतविरोधी नीतियों ने देश की राजनीतिक स्थिति को एक नया मोड़ देना प्रारम्भ कर दिया था। सारे देश में सरकारी नीतियों के विरुद्ध आवाज उठने लगी थी और स्वतन्त्रता का आह्वान किया जाने लगा था। इसी युग में सन् १९२० ई. के आसपास भारत के राजनीतिक क्षितिज पर महात्मा गान्धी का अवतरण हुआ।प्रादुर्भाव के साथ ही अहिंसा और स्वदेशी-आन्दोलन का जोर चला। इन राजनीतिक पार-.. स्थितियों का प्रभाव साहित्य पर भी पड़ा । कवियों ने महात्मा गान्धी तथा उनके अहिंसात्मक आन्दोलन को अपनी कविता का विषय बनाया। स्वयं द्विवेदीजी ने भी "स्वदेशी वस्त्र-स्वीकार' जैपी कविता का प्रणयन किया। राजनीतिक स्तर पर भारत
१. डॉ० श्रीकृष्णलाल : 'आधुनिक हिन्दी-साहित्य का विकास', पृ० ३२॥ . २. डॉ० उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग', पृ० २६५.