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________________ १७१ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के काव्य-सिद्धान्तों को हम संस्कृत की सम्पूर्ण काव्यशास्त्रीय परम्परा, युगीन परिवेश तथा पाश्चात्त्य समीक्षा-सिद्धान्तों से एक साथ प्रभावित देखते हैं । सुरेशचन्द्र गुप्त ने लिखा है : "यद्यपि उन्होंने काव्य-प्रयोजन, काव्य-वर्ण्य और काव्य-शिल्प के विवेचन में उनसे (भारतेन्दु-युगीन कवियों से) यथावसर प्रेरणा और सामग्नी ली है, तथापि एक ओर काव्यात्मा, काव्यहेतु, काव्याभाषा, काव्यानुवाद और काव्यलोचन के विवेचन में अपने पूर्ववर्ती कवियों के सिद्धान्तों को विकसित और समृद्ध किया है, और दूसरी ओर काव्यभेद, नायिकाभेद, समस्यापूति और काव्य के अधिकारी का प्रथम बार उल्लेख कर हिन्दी कवियों को काव्य-चिन्तन की नवीन दिशा दी है। उन्होंने अपने विचारों को संस्कृत, हिन्दी, अँगरेजी, उर्दू और मराठी के काव्यशास्त्र से भली भाँति समृद्ध किया है और युग की आवश्यकताओं के अनुकूल यथास्थान मौलिक सिद्धान्त-समीक्षा की है।"५ द्विवेदीजी की सैद्धान्तिक समीक्षा की आत्मा भारतीय है, परन्तु उन्होंने अपने काव्य-विवेचन में पाश्चात्य काव्यतत्त्वों के प्रारम्भिक तथा सरल रूपों का सामान्य विवेचन प्रस्तुत किया है। युगबोध उनके इन सभी सिद्धान्तों के ऊपर अकुश की तरह लगा हुआ प्रतीत होता है। अपनी इन्हीं मान्यताओं के द्वारा उन्होंने अपने समकालीन हिन्दी-काव्य का नियमन किया एवं उसे आदर्शवादी, नीतिमूलक, इतिवृत्तात्मक नवीन मोड़ दिया। काव्य की ही भॉति द्विवेदीजी की साहित्य-विषयक मान्यताएँ भी आदर्श तथा उपयोगितावादी है। वे साहित्य को 'ज्ञानराशि का सचित कोष २ मानते थे । उन्होंने साहित्य को मनोरंजन तथा ज्ञानवर्द्धन के माध्यम के रूप में स्वीकार किया है। उनकी इस मान्यता में मानव-जीवन एवं परम्परा की उपलब्धि की संवलित विशिष्टता से साहित्य का सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा परिलक्षित होती है । कविता की ही तरह गद्य की विविध विधाओं का भी द्विवेदीजी ने अपने ढंग से विवेचन किया है। जैसे, उपन्यास को उन्होंने विविध विषयो के विस्तार का एक सहज माध्यम स्वीकार किया है : ___'उसकी सहायता से सामान्य नीति, राजनीति, सामाजिक समस्याएँ, शिक्षा, कृषि, वाणिज्य, धर्म, कर्म, विज्ञान आदि सभी विषयों के दृश्य दिखाये जाते हैं। परन्तु, वे कथा-साहित्य को विविध विषयों से परिपूर्ण होते हुए भी नैतिक आदर्शो से च्युत नहीं देखना चाहते थे। इसी कारण, उनकी तत्सम्बन्धी विवेचना भी नैतिक आदर्शों पर आधृत रही है। गद्य की अन्य विधाओं पर द्विवेदीजी के सिद्धान्तो का स्फुट प्रस्तुती १. डॉ० सुरेशचन्द्र गुप्त : 'आधुनिक हिन्दी-कवियों के काव्य-सिद्धान्त', पृ० १२५ ॥ २. 'सम्मेलन-पत्रिका', चैत्र-वैशाख, सं १९८०, पृ० ३०७ । ३. श्रीप्रभात शास्त्री : (म०) 'संचयन', पृ० १४६ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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