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१४२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व
८. श्रीरंगपत्तन : सितम्बर, १९०४ ई० । ९९. सुखदेव मिश्र : अक्टूबर, १९०४ ई० । १००. ईश्वर - ३ : अक्टूबर, १९०४ ई० । १०१. प्रसिद्ध पहलवान सैण्डो : अक्टूबर, १९०४ ई० । १०२. पठानी सिक्कों पर नागरी : नवम्बर, १९०४ ई० । १०३. चिदम्बर : नवम्बर, १९०४ ई० ।
१०४. ईश्वर - ४ : नवम्बर, १९०४ ई० ।
१०५. राजकुमारी हिमांगिनी : नवम्बर, १९०४ ई० । १०६. सांवत्सरिक सिहावलोकन: दिसम्बर, १९०४ ई० ।
१०७. सभा और सरस्वती : दिसम्बर, १९०४ ई० ।
१०८. महामहोपाध्याय पं० आदित्यराम भट्टाचार्य : दिसम्बर, १९०४ ई० ।
१०९. महाराज मानसिह : दिसम्बर, १९०४ ई० ।
११०. ग्वालियर : दिसम्बर, १९०४ ई० ।
'सरस्वती' में सन् १९०० मे १९०४ ई० तक की पाँच वर्षो की अवधि में प्रकाशित द्विवेदीजी के निबन्धों की इस विस्तृत सूची से उनकी विषय- विविधता एवं यान्त्रिक गति से लिखने की प्रतिभा का अनुमान लगाया जा सकता है । इस सूची के निबन्धों के अतिरिक्त ' विविध विषय' इत्यादि स्तम्भों की टिप्पणियाँ भी द्विवेजी ने आकार एक जैसा नही था । कुछ निबन्ध पन्ने में भी मुश्किल से सुरक्षित होता था । सबसे अधिक है । आकार की
लिखी थी । द्विवेदीजी के इन निबन्धो का तो पुस्तकाकार थे और कुछ का विस्तार एक डेढ़ से दो पन्नों में फैले उनके निबन्धो की संख्या ही दृष्टि से द्विवेदीजी के निबन्धों की लघुता का एक ही उदाहरण पर्याप्त है । नवम्बर १९१३ ई० की 'सरस्वती में प्रकाशित उनका एक निबन्ध है - ' कालिदास की जन्मभूमि' | यह निबन्ध कुल इतना ही है :
"इलियड नामक महाकाव्य का कर्त्ता होमर ग्रीस देश का निवासी था । उस समय ग्रीस अनेक छोटी-छोटी रियासतों में बँटा हुआ था । होमर बेचारा अन्धा था । वह अपने काव्य के पद गा-गाकर सभी रियासतों मे भीख माँगता भटकता फिरता था । उस समय तो उसकी कदर न हुई । पर जब वह मर गया और उसके काव्य का महत्त्व लोगों ने समझा, तब एक साथ ही कितनी ही रियासते का दावा करने लगी । प्रमाण माँगा गया, तो सभी ने उत्तर जानते, होमर ने इसी रियासत में अपनी कविता गाई थी ? तब तो उसे किसी ने न अपनाया । बेचारा होमर माँगता-खाता हो मर गया । पर पीछे से उसके माँगने और खाने और भटकते फिरने पर जन्मभूमि बनने का गर्व । कालिदास को माँगना - खाना
उसकी जन्मभूमि होने
दिया- क्या तुम नहीं